मूल-तत्व: लैकेसिस D 30, लाइकोपोडियम D 30, पैलेडियम D 12, सैक्सीफ्रागा D 30, वेस्पा क्रेब्रो D12.
लक्षण: बायीं और के अंडाशय सम्बन्धी रोग (Left sided ovarian complaints), श्रोणी-संयोजी ऊतकों का प्रदाह तथा जरायुजाल (Annexes) के रोग। रसौली, जलन एवं व्रण।
जलन की स्थितियों में लाभकारी; जरायुजाल प्रदाह (Annexitis), डिंब-वाहिनी शोथ (Salpingitis), श्रोणी-संयोजी ऊतकों के प्रदाह (Parametritis) तथा अण्डाशय की रसौली (Ovarian cyst)।
शल्य-चिकित्सा (Surgical operation) का निर्णय लेने के पूर्व इस दवा को आजमाना चाहिए, साथ ही शल्य-चिकित्सा के बाद खराब क्षतचिन्हों की स्थिति में भी, तथा श्रोणी-संयोजी ऊतकों के प्रदाह (बायीं ओर)आदि रोगों में भी इस औषधि का प्रयोग करें। दाहिना भाग प्रभावित होने पर R 38 आजमाना चाहिए।
क्रिया विधि: लैकेसिस: पेट (बायीं ओर) में मरोड़ वाली पीड़ा, साथ में चेहरे पर लालिमा (flushing)।
लाइकोपोडियम: नीचे की ओर जाती हुई ‘S’ आकार की बड़ी आँत के चारों ओर मरोड़ वाले दर्दों में विशिष्ट प्रभाव, ऐसे दर्दों में कैंसर का संदेह, जिसका अक्सर काफी ठोस आधार होता है।
पैलेडियम: अंडाशय की रसौली पर तथा तीक्ष्ण एवं पुरानी जलन पर कार्य करता है।
सैक्सीफ्रागा: गुर्दे की पथरी (बायीं ओर) पर विशिष्ट क्रिया। इस दवा की क्रिया स्त्री पेट (बायीं ओर) के मुख्य प्रभावों की ओर निर्देशित होती है, जब दर्द ऊपरी अंगों की ओर फैलता है और गुर्दें की पथरी का दर्द या आँतीय दर्द के साथ होता है। जलन की ये सामान्य स्थितियाँ बढ़ती हुई प्रतिबिंबों के रूप में कई अंगों पर दिखाई देती है और उन सब को दूषित कर सकती हैं।
खुराक की मात्रा: लंबे उपचार के रूप में, प्रतिदिन तीन बार भोजन के पूर्व थोड़े पानी में १०-१५ बूँदें लें, जिन्हें “टिप्पणी” के अंतर्गत सूचीबद्ध अन्य पूरक दवाओं के साथ विकल्प रूप में ले सकते हैं। अचानक विकसित होने वाले बुखार तथा दर्द के साथ तीक्ष्ण जलन में, वही खुराक प्रत्येक १-२ घंटे पर लें (थोड़े गर्म पानी में)।
साथ में, गर्म पुलटिस, पके आलू की पुलटिस या शारीरिक-चिकित्सकीय उपचार, जैसे शॉर्ट-वेव किरणें (short wave rays)।
टिप्पणी: यद्यपि, किसी चिकित्सक के लिए स्त्री पेट के रोगों के ध्यान में रखते हुए निदान करना अत्यधिक नाजुक मसला है, वर्तमान दवा विभिन्न प्रकृति वाले पेट के रोगों (बाँये ओर) के लिए अनुमोदित की जाती है। यदि कई पूरक औषधियों के साथ वैकल्पिक प्रयोग के बावजूद कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं दिखाई देता, तो रोग के बारे में और अधिक गंभीरता से सोचने समझने की आवश्यकता पड़ेगी।
पूरक औषधियों की सूची में हैं:
R 37, पेट में मरोड़ वाले दर्द और कब्ज में, जो संभवतः आँतीय मरोड़ के कारण होती है।
R 38, पेट के रोग (दाहिनी ओर के)
R 50, त्रिकास्थि भाग में तेज दर्द।
R 42, शिरा की स्थिरता, शिरा-शोथ तथा शिराओं में जलन।
R 1, सभी प्रकार की जलन में, विशेषकर जब बुखार साथ हो।
R 4, ऐंठन युक्त आँतीय मरोड़ तथा अतिसार में।
R 13, रक्तस्त्राव युक्त बवासीर तथा मलाशय का प्रभावित होना।
R 17, रसौली का संदेह होने पर।
R 20, अंडाशय सम्बन्धी स्त्राव के विकारों में।
R 27, गुर्दे की पथरी में।
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