होम्योपैथी विज्ञान – लाभ, स्रोत, शाक्ति, मिथक और आवश्यक जानकारी

परिभाषा

होम्योपैथी (जिसे ग्रीक शब्द होमोइयस यानी समान और पैथोस मतलब पीड़ा से लिया गया है) उपचार करने की कला है। यह एक उत्कष्ट चिकित्सकीय पद्धति है। जो इसके संस्थापक डॉ.क्रिशिचयन फ्रेडरिक सौम्युएल हैनीमैन द्वारा प्रतिपादित कुछ बुनियादी सिद्धांतों पर काम करती है।  एक विज्ञान के तौर पर होम्योपैथी, इसके सूत्रपात होने यानि जर्मनी में 200 से ज्यादा वर्ष पहले, से लेकर अब तक कहे आमूलचुल परिवर्तनों से गुज़र चुकी  है। यह अब दुनिया के लगबग हर देश में पहूंच चुकी है। वर्तमान समय में यह बीमार लोगों को फिर से स्वस्थ  करने के लिए केवल उपचार करने का व्यापक रूप से स्वीकार्य तरीका ही नहीं है बल्कि ज्यादा सुरक्षित और सौम्य तरीका भी है

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होम्योपैथी के लाभ

होम्योपैथी के ज़रिए कोई व्यक्ति धीरे धीरे और स्थायी रूप से दीर्घकालिक या जीवन भर चलने वाली शारिरिक मनोवैज्ञानिक परेशानियों के साथ साथ उन बाधाओं को भी दूर कर सकता है जो किसी अन्य उपचारात्मक पद्धति से दूर नही हो पाई हैं। इस तरह,होम्योपैथी चिकिस्तकीय प्रयास में सिर्फ एक सहायक या स्थानापन्न से कही ज्यादा है।होमयोपैथी उच्च सामर्थ्यवान (potentised)तत्वों की बेहद छोटी खुराकों की मदद से शरीर द्वारा सव्यं को ठीक करने की शक्ति बड़ाने का काम करती है। होम्योपैथी की सही औषधि शरीर की स्वभाविक उपचार प्रवृत्ति को बेहद धीमे धीमे प्रोत्साहित करती है।

होम्योपैथी अक्सर वहां ज्यादा प्रभावी होती है, जहां सामान्य प्रक्टिस बेअसर हो जाति है। मोडिकामेंट (उपचारी तत्व ),को यदि कुशलता के साथ लिया जाए, तो यह रोग के बड़े हिस्सी को ठीक कर देता है जेसकी संपर्क में मानव आता है।

वास्तव में होम्योपैथी में समय की बिल्कूल बर्बादी नही होती। बीमारी का लक्षन दिखते ही होम्योपैथिक औषधि का सुझाव देना संभव है, हम उन लक्षणों को प्रूवर (व्यक्ति जिस पर औषदि का परीक्षण किया जाता है )पर किसी औषधि के ज्ञात प्रभाव से मिलाने में सक्षम होते हैं। औषधि के बारे में संपूर्ण जानकारी और उसकी रोगाणु वृद्धि क्षमता जानने के लिए स्वस्थ मानवों पर होम्योपैथी की सभी दवाओं को प्रमाणित किया जाता है।

औषधि के स्रोत

होम्योपथिक दवाओं को लेना एकदम सुरक्षित है। किसी भी तत्व का होम्योपैथिक ढ़ंग से इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन इनमें से ज्यादा दवाईयाँ सब्जियों पशुओं और अन्य चेज़ों के अलावा खनिज स्रोतों  से प्राप्त प्राणातिक तत्व से बनाई जाती है। लगभग 3000 होम्योपैथिक दवाएं मौजूद हैं। इसकी अतिरिक्त्त, आधुनिकीकरण के नतीजे के तौर पर पैदा हो रही समस्याओं का सामना करने के लिए रोज़ाना नई दवाएं जोड़ी जा रही हैं।

होम्योपैथी  की  शक्ति

होम्योपैथी के खाते में औषधीय तत्व बनाने का विशिष्ट तरीका और बाद में निदानकरी शक्ति  बढ़ाते जबकि अपरिषणत औषधीय तत्व को घटाते हुए उनमें सामर्थ्य पैदा करने की उपलब्धि  है। यह दुष्प्रभाव होने के अवसर कम करता है और जीवन सिद्धांत को पर्याप्त  रूप से उत्प्रेरित करने लायक न्यूनतम खुराक से रोगी को ठीक करता है ताकि यह रोग की शक्ति  का प्रतिरोध करे और स्वास्थ्य लौटाए।

होम्योपैथी कंपनीयों में शोध

होम्योपैथी के इन बुनियादी सिद्धांतों को लागू करते हुए और पिछले कई वर्षों में लाखों लोगों के उपचार के बहुमूल्य अनुबव के साथ एस.बी.एल, बैक्सन, डा. रेकवेग  जैसे  होम्योपैथी कंपनीयों ने होम्योपैथी की दुनिया में अप्रतिम योगदान दिया है। इस उपचारात्मक पद्धति के पहलुओं पर गहराई से शोध किया है, अपने रोगियों पर होम्योपैथिक दवाओं के प्रभाव का ध्यानपुर्वक निरिक्षण किया और न केवल परेशानी करने के लिए बल्कि संदेह को कम करने और ज्यादा शक्तिशाली पीढ़ियाँ करने के उद्देश्य से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई वर्षों तक निरंतर उनके आगे की कार्यवाही की गयी।

होम्योपैथी सुरक्षित है, इसके दुष्प्रभाव नही है, यह इसे लेने की आदत न डालने वाली है, संपूर्णता में उपचार करती है और सपोक्षिक रूप से सस्ती है

कई निदान और उपचारात्मक पध्दतियाँ आई और बिना कोई प्रभाव छोड़े चली गई लेकिन होम्योपैथी समय की परीक्षा पर खरी उतरी है और यही वजह है कि इसे नजरंदाज करना मुश्किल है। यहां तक कि पारंपरिक चिकित्सा में भी ,ज़्यादातर उपचार और औषधीय पद्धतियों कुछ वर्षों में ही अप्रचलित  में जाती है। जबकि होम्योपैथी विकसित और परिष्कृत हुई  है , लेकिन इसे संचालित करने वाले सिध्दांत और शोध आज भी उतने ही महत्वपूर्ण और मूल्यवान हैं जितने कि वे इसके आरंभ होने के समय थे। यह कई तरह के रोगों को ठीक करने की अतुलनीय प्रभाविता के साथ इस विज्ञान की दृढता  को प्रमाणित करता है।

होम्योपैथी के बारे में मिथक

मिथक -होम्योपैथी एक “धीमे काम करने वाली पध्दति” है 

दावा का प्रभाव इस पर निर्भर करता है कि क्या रोग तीव्र है या दीर्घकालिक। तीव्र रोग हाल ही में पैदा होते हैं ,जैसे ज़ुखाम , बुखार , सिरदर्द जो बेहद तेज़ी से बढ़ते हैं और यदि सही टंग से चुनी हुई दवा रोगी को दी जाति ही , तो ये बेहद तेजी से परिणाम देती हैं। दीर्घकाल रोग वे रोग हैं जिनका लंबा इतिहास है, जैसे श्वासनीशोथ दमा , दादा , जोडों का प्रदाह आदि।  ये अन्य चिकित्सकीय प्रणलियों द्वारा निरंतर दबाए जाने के  फलस्वरूप होते हैं। इस प्रकार के दीर्घकालिक रोगों के ठीक होने के लिए निशिचत रूप से कुछ समय चाहिए। यह रोग की जटिलता ,अवधि और लक्षण\दबाए जाने के कारण है कि उपचार में ज्यादा समय लग जाता है नाकि होम्योपैथी के धीमें प्रभाव के कारण , जो कि अक्सर माना जात है।

मिथक -होम्योपैथिक दवाएं लेते समय एलोपैथिक या अन्य उपचार नही कराए जा सकते 

यदि कोई व्यक्ति लंबे समय से जारी एलोपैथिक उपचार ,खासतौर पर स्टेरॉयड या “जीवन -रक्षक औषधियों ” पर है , तो अचानक दवाइयों को रोक देने से उसके लक्षणों का प्रभाव बाढ़ सकता है।  इसलिए बेहतर तरीका है कि सुधार आरंभ होने पर धीरे धीरे  एलोपैथिक दवाइयों की’ खुराक कम की जाए और फिर रोक दी जाए।

मिथक – होम्योपैथिक दवाओं के साथ प्याज , लहसुन , चाय ,कॉफी ,आदि पर पाबंदी होती है 

शोधों ने दिखा है कि इन चीजों का दावा की प्रभाविता पर कोई असर नहि पड़ता है यदि इन्हें संयम के साथ इस्तेमाल किया जाए और इनके व दवाओं के बिच पर्याप्त  अंतर बनाए रखा जाए।  होम्योपैथिक दवाईयाँ आदतन कॉफ़ी पिने और पान खाने वाले रोगियों पर अच्छा काम करती हैं।

मिथक -उपचार लेने के बाद रोग बढ़ाता है 

प्रत्येक व्यक्ति जानता है ‘कि होम्योपैथिक दवाइयों को लक्षणों की समानता के आधार पर दिया जाता है. दावा का पहला प्रभाव रोगी को उसका रोग बढ़ने के तौर पर महसूस हो सकता है लेकिन वास्तव में यह केवल होम्योपैथिक उद्दीपन (aggravation) है जो कि उपचारात्मक प्रक्रिया का अंग है।

मिथक -होम्योपैथिक दवाओं को छूना नही चाहिए 

कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के हाथ से दावा ले सकता है बशर्ते कि उसके हाथ साफ हों।

मिथक -होम्योपैथी केवल बच्चों के लिए अच्छी है 

होम्योपैथिक दवाईयाँ बच्चों और  वयस्कों दोनों के लिए समान रूप से अच्छे हैं। यदि बच्चों को शुरुआत से  होम्योपैथिक उपचार दिया जाता है , तो यह न केवल रोग को पूरी तरह से ख़त्म करने में  मदद करता  है बल्कि उनकी  प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है और रोग को दीर्घकालिक बनने से रोकता है, और इस प्रकार ज्यादा शक्तिशाली पीढ़ियों का विकास करता है।

मिथक -होम्योपैथी में रोग विज्ञान संबंधी जांच की जरूरत नही होती है 

हालांकि आरंभिक होम्योपैथिक सुझाव के लिए जांच की जरूरत नही होती लेकिन रोग को सम्पूर्णता में ठीक करने और इसके रोगनिदानों को जानने के लिए उपयुक्त्त जांच कराना आवश्यक होता है। ये मामले का समुचित प्रबंधन करने और इसके फॉलो अप में भी मदद करती है।

मिथक -एक दवा ही दी जानी चाहिए 

होम्योपैथिक सिंध्दातों के अनुसार एक दवा ही पहला विकल्प होना चाहिए लेकिन रोगी द्वारा प्रस्तुत लक्षणों की जटिल रूपरेखा एक समय में एकसमान (सिमिलिमम ) दवा का सुझाव देना कठिन बना देती है। इसलिए , दवाओं का संयोजन देना सामान्य बात हो गयी है।

मिथक -सभी होम्योपैथिक दवाईयाँ एक जैसी होती है 

ऐसा लगता है कि सभी होम्योपैथिक दवाईयाँ एक जैसी हैं क्योंकि उन्हें बूंदों में दिया जाता है।  वास्तव में सभी तैयार द्रवो में वाहक समान रहता है लेकिन इसे विभिन्न होम्योपैथिक सामर्थ्यवान घोलों द्वारा चिकिस्कीय रूप जाता है।

मिथक -होम्योपैथी स्वयं पढ़े जाने वाला विज्ञान है 

होम्योपैथी एक वैज्ञानिक पध्दति है और  कोई ऐसी चीज नही है जिसे , किताबों से पढ़ा जा सके। होम्योपैथ बनने के लिए किसी व्यक्ति को  एक वर्ष की इंटर्नशिप सहित 5 1/2वर्ष का डिग्री पाठ्यक्रम होम्योपैथी में पूरा करना पड़ता है। पाठ्यक्रम के दैरान  छात्रों को शरीर रचना विज्ञान (एनाटॉमी), शरीर क्रिया विज्ञान (फिजियोलॉजी), रोगनिदान विज्ञान (पैथोलॉजी), विधिशास्त्र (ज्यूरिस्प्रूडेंस), शल्यचिकिस्त (सर्जरी ), चिकित्सा पध्दति (मेडिसिन), स्त्रीरोग विज्ञान (गायनेकॉलॉजी) व प्रसूति – विज्ञान (ऑब्सटेट्रिक्स) पढाया जाता है। कानून के अनुसार मान्यताप्राप्त डिग्री के बिना होम्योपैथी की प्रैक्टिस करना दंडनीय अपराध है। भारत में कई कॉलेज भी कई विषयों में होम्योपैथी , एम. डी। (होम ) की  स्नातकोत्तर डिग्री प्रदान करते हैं।