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पेट दर्द को पेट की ऐंठन भी कहा जाता है। सूजन के साथ पेट की ऐंठन अक्सर आंतों के अंदर फंसे हवा के कारण होती है। पेट के दर्द के विभिन्न कारणों में खाने के बाद अपचन तक सीमित नहीं है; गैल्स्टोन और पित्ताशय की थैली सूजन (cholecystitis), गर्भावस्था, गैस, सूजन आंत्र रोग (अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन रोग), एपेंडिसाइटिस, अल्सर, गैस्ट्र्रिटिस, गैस्ट्रोसोफेजियल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी), अग्नाशयशोथ हो सकता है
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R37 drops in Hindi लक्षण: पेट फूलने के साथ पेट में दर्द, अफारा (Meteorism), पेशाब में पोर्फिरिन पदार्थ जाना (Porphyrinuria), आंतों में दर्द, विभिन्न कारणों से होने वाली पेट की मरोड़ जो पेशाब में पोर्फिरिन पदार्थ जाने (Porphyrinuria) तथा यकृत-रोग का लक्षण है। यकृत का सूत्रण रोग (Cirrhosis of liver), पैत्तिक शूल; सीसा-विष के कारण होने वाला पेट दर्द, पीड़ा-युक्त मासिकधर्म; वृक्कीय शूल (Renal colic) के लिए पूरक उपचार। पुराने कब्ज़ की शिकायत को धीरे-धीरे नियमित करती है।
आर ३७ ड्रॉप्समूल-तत्व: एलूमिना D12, ब्रायोनिया D4, कोलोसिंथिस D4, लैकेसिस D30, लाइकोपोडियम D4, मर्कर. सब. कोर. D8, प्लंबम एसेटिक D12, सल्फर D12, नक्स वोमिका D6.
आर ३७ क्रिया विधि: यह सत्य है की हमारी जैविक-संरचना में यकृत (Liver) लगभग संपूर्ण निर्विषीकरण प्रक्रिया का संचालन करता है, विशेषकर आँतों में। आँतों में सारा विघटित भोजन लीवर की ओर जाता है जिसमें से कुछ एक को छोड़कर सभी तत्व अन्न रसों (Chylifers) के रूप में सांद्रित हो जाते हैं। तदनन्तर की लीवर के क्रियात्मक रोग आँतों के अन्दर रूकावट की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। दूसरी ओर, लीवर आँतों के माध्यम से विषैले तत्त्वों को बाहर भेजता है। इस सम्बन्ध में, कोलेस्टरीन तथा पोर्फिरिन का हीमोग्लोबिन के ऊतकों के बीच मध्यस्थ के रूप में विशेष वर्णन करना आवश्यक हो जाता है; जो यकृत द्वारा उपभोग में लाये जाते हैं। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में लीवर को अनेक प्रकार से हानिप्रद विषों के संपर्क में आना पड़ता है। यह रुक-रुक कर होने वाला उत्सर्जन अथवा मध्यस्थ तत्वों को सोखने का समावेश मात्र है तथा यह बार-बार की प्रक्रिया आँतों में रूकावट (Repercusions) उत्पन्न कर देती है। फलस्वरूप पेट फूलना, अफारा (Meteorism), पेट फूलने के साथ दर्द, आँतीय मरोड़ जिनको अक्सर उपांत्र शोथ (Appendicitis) अथवा व्रण (Tumours) के परिणाम स्वरुप समझा जाता है। ये रोग निकोटिन के द्वारा भी हो सकते हैं। पुराना कब्ज़ लगातार सहवर्ती (Concomitant) होता है। तथा R37 और भी अधिक अनिवार्य बन जाता है।
एलूमिना: मल छोटी गाँठों के रूप में; कब्ज की शिकायत।
ब्रायोनिया: कब्ज की शिकायत; काला पाखाना।
कोलोसिंथिस: पेट फूलने के साथ पेट में दर्द; संकुचन की प्रवृत्ति, आँतीय मरोड़।
लैकेसिस: पाचन ठीक तरह से न होना (Poor digestion), विशेषकर अत्यधिक मात्रा में कुनीन (Quinine) या एल्कोहल लेने के बाद।
लाइकोपोडियम: शाम को पेट फूलना। यकृत का सूत्रण रोग (Cirrhosis of liver), पुराना कब्ज एवं अपच।
मर्कर. सब. कोर: कूथन (Tenesmus), पेचिस होने जैसी (Dysenteriform) आँतीय मरोड़।
प्लंबम एसेट: आँतों में तेज दर्द। पनीला तथा वमनकारी पाखाना; दस्तों की पुरानी शिकायत। पेट की स्पर्श के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता।
सल्फर: प्रतिक्रियात्मक पदार्थ (Reaction agent), बदबूदार अपानवायु, पेट में सूजन। प्रातःकालीन दस्त।
R37 मल को नियमित करता है और अनेक स्थितियों में कब्ज़ समाप्त करता है।
आर ३७ ड्रॉप्स खुराक की मात्रा: लंबे उपचार के लिए प्रतिदिन ३ बार भोजन के पूर्व थोड़े पानी में १०-१५ बूँदें। रुक-रुक कर होने वाले दर्द, पेट दर्द, अफारा, तथा आँतों में छेद हो जाने की आशंका होने पर (Suspected perforation), (बिना पानी मिलाये बूँदों को मुँह में कुछ देर रख कर थूक सकते हैं), १-२ – १ घंटे तक प्रत्येक ३-५ मिनट पर ५-१०-१५ बूँदें लें। आधारभूत परिवर्तन, पैत्तिक शूल, वृक्कीय शूल, उपांत्र (Appendix) एवं अन्य अंगों की जलन में निम्नलिखित टिप्पणी लागू होती है :
टिप्पणी: पित्ताशय के शूल के लिए : R7 के साथ या विकल्प के रूप में।
गुर्दे की पथरी के शूल में : R27 के साथ या विकल्प के रूप में।
शांति के लिए : R14 से तुलना करें
आँतों तथा पेट के दर्द में : R4 को विकल्प रूप में प्रयोग करें।
पेट में फोड़े हो जाने तथा पकाशय के प्रदाह (Gastritis) में : R5 के साथ
पाचन रस थैली प्रदाह (Pancreatitis) में : R72 देखें।