डॉ रेकवेग R82 Fungal infection medicine फफूँद निरोधी, फंगस का इलाज

R82 homeopathy drops in Hindi fungal infection medicine fungus ka ilaj

फंगल इन्फेक्शन, कवक के बारे में संक्षिप्त जानकारी
फंगल संक्रमण तब होता है जब एक आक्रमणकारी कवक शरीर के एक क्षेत्र में फैल जाता है और प्रतिरक्षा प्रणाली इसे रोकने में असमर्थ या अभिभूत हो जाता है । ऊतक पर हमला करने वाला एक कवक ऐसी बीमारी का कारण बन सकता है जो त्वचा तक सीमित हो सकता है, या यह ऊतक, हड्डियों और अंगों में फैल सकता है या पूरे शरीर को प्रभावित कर सकता है। लक्षण प्रभावित क्षेत्र पर निर्भर करते हैं, लेकिन आमतौर पर त्वचा के लाल चकत्ते या योनि संक्रमण जिसके परिणामस्वरूप असामान्य निर्वहन होता है। त्वचा पर लक्षण: चेहरे पे काले धब्बे , रंग का नुकसान, छीलने, चकत्ते, या त्वचा की चिप्पी। उपचार में एंटीफंगल दवा शामिल है जो ऑइंटमेंट क्रीम्स ड्रॉप्स और टेबलेट्स के रूप में मिलते है । टिनिया कॉरपोरेट या रिंगवार्म एक त्वचा संक्रमण है जो एक कवक के कारण होता है जो मृत ऊतकों, जैसे त्वचा, बाल और नाखूनों पर रहता है। रिंगवॉर्म कवक है जो दोनों जॉक खुजली और एथलीट के पैर का कारण बनता है

R82 drops Hindi लक्षण : फफूंद संक्रमण जैसे दाद, अरुमूल सम्बन्धी खुजली, (Jockitch) पैरों की दाद, हाथ-पैरों की चमड़ी से सफेद पपड़ियां झड़ना, गले में छाले, कष्ट (Soreness), कान में खुजली के साथ दर्द, उँगली के नाखूनों के नीचे सफेद – रंगहीनता, योनि-सम्बन्धी संक्रमण अथवा अन्य फफूंद सम्बन्धी त्वचा। रोगी में थकावट, चिड़चिड़ापन, अस्पष्ट विचार, एकाग्रचित्तता का अभाव, सामान्य असंतोष, मीठे की लालसा, पेट फूलना आदि लक्षण होते हैं। एलर्जिक प्रकृति की संवेदनशीलता बढ़ती है

आर८२ एन्टी फंगल ड्रॉप्स मूल-तत्व : ऐस्परजिलस नाइगर D12, कैंडिडा ऐल्बिकन्स D30, क्लैमाइडिया ट्रैकोमेटिस D30, एकीनेशा ऐंगस्टिफोलिया D12, माइकोसिस फंगाइड्स D12, पेनिसिलिनम D12, टेकोमा D5, जिंकम मेटालिकम D10

आर८२ क्रिया विधि : ऐस्परजिलस नाइगर; कैंडिडा ऐल्बिकन्स, माइकोसिस फंगाइड्स, पेनिसिलिनम :
ये सारे मूल-तत्व शरीर की सुरक्षात्मक प्रक्रिया को उत्तेजित करके प्रतिजन सम्बन्धी या रोग विषों सम्बन्धी आराम देते हैं। हमारे शोध में, १० स्वस्थ शरीरों से रक्त लिया गया और सूक्ष्मदर्शी (Microscope) में श्वेत रक्त कणिकाओं की फफूंदी कोशिकाओं की ओर गति को मापा गया, सुधार तथा भक्षक कोशिका को नष्ट करने वाली प्रक्रिया (Phagocytosis) में लगने वाले समय के निमित्त जांच की गई।
इन फफूंदों की रोग विष निर्मित औषधियां (Nosodes) भाग लेने वाले व्यक्तियों को दी गयीं, ३० मिनट बाद पुनः खून लिया गया और पुनः श्वेत रक्त कणिकाओं की क्षमता मापी गयी। सभी स्थितियों में श्वेत रक्त कोशिकाएँ फफूंदी कोशिकाओं को नष्ट करने में २५% से ३०% अधिक तेज और अधिक प्रभावशाली थीं।
क्लैमाइडिया ट्रैकोमेटिस : रिक्केटट्सिया (Rickettsia) की प्रतिजनक चिकित्सा के लिए तथा फफूंद (Fungal) उत्पत्ति जन्य त्वचा विकृति की स्थिति को रोकने की होम्योपैथिक औषधि।
एकीनेशा ऐंगस्टिफोलिया : लसिका-शोधक तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता वर्द्धक।
जिंकम मेटालिकम : भ्रामक (Foggy) विचारों से मुक्त करने वाली तथा एकाग्रचित्तता के अभाव में आराम के लिए। जिंक के पोषक अवशोषण को उद्दीप्त करती है।
टेकोमा : सुपरिचित, सर्वाधिक शक्तिशाली फफूंद निरोधी बनस्पति।

आर८२ एन्टी फंगल ड्रॉप्स खुराक की मात्रा: बाहरी लक्षणों के लिए R82 की कुछ बूँदें स्थिति के अनुसार प्रभावित भाग पर दिन में २ बार लगाएं। बाहरी प्रयोग के लिए R82 सुरक्षित दवा है, बल्कि रुई के फोहे से बच्चों के कान में भी लगा सकते हैं (यदि मध्य कान की झिल्ली में कोई छेद न हो तो)।
आंतरिक प्रयोग : प्रतिदिन ३ बार १० बूँदें। यदि इस खुराक से अत्यधिक मल-शोधन होने लगे, या अत्यधिक पतला मल होने लगे तो खुराक कम कर देनी चाहिए, प्रतिदिन ३ बार १ बूँद लेनी चाहिए और फिर धीरे-धीरे बढ़ाकर सामान्य खुराक लेनी चाहिए।
बचावकारी औषधि के रूप में : रोग बार-बार होने से रोकने के लिए हर १ दिन छोड़ कर ५ बूँद लें। एल्कोहल के प्रति संवेदनशीलता होने पर १ गिलास गर्म पानी में १० बूँदें लें एल्कोहल को १ मिनट के लिए फैलने दें।
२ साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बाहर से पेट पर बूँद लगायें और उसे बच्चे से मलने के लिए कहें।

टिप्पणी: प्रदाह के लिए या छालों में R1 का प्रयोग करें।
मूत्र-मार्ग के फफूंदीय संक्रमण के लिए R18 का प्रयोग करें।
पाचन शक्ति दुर्बलता या आँतीय मरोड़ साथ में होने पर R5 का प्रयोग करें।
प्रोस्टेट सम्बन्धी रोग होने पर R25 का प्रयोग करें।
कष्टप्रद मासिक स्त्राव तथा मासिक के अभाव के लिए R28 का प्रयोग करें।
मासिक पूर्व होने वाले तनाव के कारण लक्षण वृद्धि होने पर R50 तथा R75 का प्रयोग करें।
त्वचा की दुर्दान्त स्थितियों तथा सोरियासिस (Psoriasis) के लिए R65 का प्रयोग करें।
कैंडिडा के अति-मारक तत्व के उपचारकारी संकट से बचाव के लिए R26 तथा R60 का प्रयोग करें।
साथ में सिर दर्द होने पर R16 का प्रयोग करें।

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